ये
हिमाक़त करूं सवाल कहां
तल्ख़ बोलूं मेरी मज़ाल कहां
अब
नसीमे सहर की उम्र ढली
धड़कनों
में रही वो ताल कहां
फ़िक्र बच्चों की सूखी रोटी की
दे
सके सब्जी और दाल कहां
बीता
बचपन गयी जवानी भी
मस्त
हिरणी सी अब वो चाल कहां
एक
अदना किसान हूँ यारो
मैं
बताओ कि मालो माल कहां
मतलबी
हैं यहां सभी रिश्ते
वक़्ते
मुश्किल में बनते ढाल कहां
ठूंठ
बरगद खड़ा हुया तन्हा
होती
चौपाल पे रसाल कहां
दे
गयी प्यार में दगा 'निर्मल'
बेवफा
को मगर मलाल कहां
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