एक कप चाय : सतपाल
ख़याल
“उम्र अस्सी की हो
गई | दस साल पहले पत्नी छोड़ गई ,बेटी विदेश में ब्याही हुई है | बेटा इसी शहर में
है लेकिन किसी कारणवश साथ नहीं रहता ,खैर
!”
इतना कहकर गुप्ता जी
ने ठंडी आह भरी और मुझे पूछा कि चाय पीओगे
?
मैंने “हाँ” में सर हिला दिया |
चाय बनाते हुए
गुप्ता जी ने मुझे कहा कि एक कप चाय मुझे बनानी नहीं आती और बहुत मुश्किल भी है
,एक कप चाय बनाना | एक कप चाय बनाना अगर आदमी सीख ले तो उसे खुश रहने के लिए किसी
की ज़रूरत नहीं पड़ेगी |
गुप्ता जी ने चाय
मेज़ पे रख दी और मैं भी उनके साथ चाय पीने लगा |
मैंने उनसे पूछा कि
आप इस उम्र में इतने बड़े मकान में अकेले रहते हो और बीमार भी हैं तो ..
“बेटा , ज़्यादा से
ज्यादा क्या होगा ,मर जाउंगा ,बस | इससे बुरा और क्या हो सकता है, अब मुझे मौत का
डर नहीं है | लेकिन ज़िन्दगी को लेकर कुछ नाराज़गियां तो हैं |”
मैंने पूछा “क्या
नाराजगी है”?
“यही कि एक कप
चाय कैसी बनानी है, ये न सीख पाया” गुप्ता
जी थोड़ा मुस्कुरा कर चुटकीले अंदाज़ में बोले |
“अंकल , अफ़सोस होता
है क्या कि आप उम्र भर जिस परिवार के लिए कमाया उनमें से कोई भी साथ में नहीं है”
“बेटा , ये न्यू
नार्मल है | ऐसा होता ही है | तुम भी अभी से एक कप चाय बनान सीख लो”
मैं चाय ख़त्म करके
उठा और गुप्ता जी से कहा कि अगर कोई ज़रूरत हो तो मुझे बताइयेगा |
गुप्ता जी ने कहा – “नहीं,
मेरा बेटा है न | पास में ही तो है |”
मैंने सोचा बाप ,बाप
ही होता है ,बेटा चाहे कैसा भी हो ,उससे नाराज़ होते हुए भी नाराज़गी ज़ाहिर नहीं
करता |
मैं बापस घर आ गया
और रात भर सोचता रहा कि हासिल क्या है इस ज़िन्दगी का | जो आदमी सारी उम्र परिवार
के लिए मरता है , अंत में परिवार उसे छोड़ देता है और क्या ये बाकई न्यू नार्मल है
| मृत्यू से बड़ा दुःख तो ज़िंदगी है | मृत्यु तो वरदान है जो इस अभीशिप्त जीवन के दुःख से
मुक्त कर देती है | ये सोचते- सोचते सुबह हो गई |
मैं उठकर दो कप चाय बनाकर लाया और पत्नी से पूछा कि
पीओगी क्या ?
पत्नी बोली कि आफिस
के लिए लेट हो जाऊँगी तुम अकेले ही पी लो | मैं मन ही मन हंसा और गुप्ता जी का एक
कप चाय पे दिया ज्ञान मुझे बरबस याद आ गया |
मैंने चाय नहीं पी ,
दोनों चाय के कप मेज़ पे पड़े मानो मुझ पर तंज़ कर
रहे हों और मैं उन्हें इग्नोर करके
तैयार होकर आफिस को चल दिया | गाड़ी में बैठा तो देखा की शर्ट का एक बटन टूटा हुआ
था , मैंने मुस्कुरा कर आस्तीन को फोल्ड कर लिया और ख़ुद को मोटीवेट करने के लिए
गाड़ी में रिकार्ड मोटीवेशनल स्पीच सुनने लगा | स्पीकर यही कह रहा था कि बस चलते
रहो ,रुकना मत ,रुक गए तो खत्म हो जाओगे ,किसी तालाब की तरह सड़ने लगोगे ,बहते रहने
में ही गति है | मैं आफिस में पहुंच कर एक कनीज़ की तरह अपने बादशाह सलामत बॉस को
गुड मार्निंग कह कर अपनी कुर्सी पर बैठ गया |
अचानक एक कालेज के
मित्र का फोन आया कि तू फलां चाय की दुकान
पे लंच टाइम में आ जाना | आज “एक बटा दो “ चाय का आनन्द लेते हैं |
कालेज के जमाने में हम लोग ऐसे ही करते थे| दो दोस्त हों तो एक बटा दो ,तीन हों तो
एक बटा तीन ,एक बटा चार की भी नौबत आ जाती
थी |
और अब दो कप चाय मेज़
पे पड़ी रह जाती है |
खैर ! इस चाय की फलासफी
ने मन को उदास कर दिया |
शाम को घर पहुंचते
हीपता चला कि गुप्ता अंकल की डेथ हो गई | मैं दुखी तो हुआ लेकिन पता नहीं क्यों मन
का एक कोना तृप्ती से भर गया कि एकांत के चंगुल से एक आदमी को निज़ात मिल गई |
“क्या ये सही है कि
हमें खुश रहने के लिए किसी की ज़रूरत नहीं पडती ? “ मैंने खुद से ही पूछा और खुद को
ही जवाब दिया –
“ कोई सदियों में एक
बुद्ध पैदा होता होगा जिसे अकेलेपन में खुशी मिलती होगी | हम लोग जो बेल –बूटों की तरह पैदा होते हैं ,हमें सहारे की ज़रूरत होती
है | हम अकेले में खुश नहीं रह सकते|”
गुप्ता जी एक कप चाय
बनाना तो नहीं सीख पाए लेकिन जीवन का
अंतिम पहर उन्होंने एक कप चाय के सहारे ही काटा |
5 comments:
चाय का कप एक बहुत जरुरी फलसफा
बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन।
सादर
अकेले जूझते आज के बुजुर्गों की मर्मस्पर्शी स्थिति ।
और चाय का फलसफा ....
हर कोई बुद्ध नहीं हो सकता । नामुमकिन नहीं लेकिन कठिन है ।
बहुत संवेदनशील कहानी ।
सतपाल जी की ये कहानी अपने आप में पूरा अध्याय है , ये एक कप की फिलोसॉफी कोई साधारण बात नहीं,
साथ ही ये न्यू नार्मल गज़ब !!
सार्थक चिंतन देता सृजन।
मन की वीणा ,संगीता स्वरूप जी और अनिता सैनी जी ,
कहानी आपको पसंद आई ,बहुत -बहुत शुक्रिया |
आभार
Post a Comment