Monday, October 11, 2021

खूबसूरत ग़ज़ल -बशीर बद्र


ग़ज़ल

 मुस्कुराती हुई धनक है वही
उस बदन में चमक दमक है वही

फूल कुम्हला गये उजालों के
साँवली शाम में नमक है वही

अब भी चेहरा चराग़ लगता है
बुझ गया है मगर चमक है वही

कोई शीशा ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही

प्यार किस का मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही

5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 16 फरवरी 2022 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बेहतरीन

Manisha Goswami said...

बहुत ही बेहतरीन..

मन की वीणा said...

उम्दा/बेहतरीन।

अनीता सैनी said...

वाह! सराहनीय सृजन।

प्यार किस का मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही... हृदयस्पर्शी भाव।
सादर