Tuesday, October 26, 2021

साहिर की पुण्यतिथि (25 अक्टूबर पर विशेष)- देवमणि पांडेय का लेख

 (साहिर की पुण्यतिथि 25 अक्टूबर पर विशेष) : लेखक देव मणि पांडेय

साहिर और सुधा मल्होत्रा की दास्ताँ

अमृता प्रीतम के लिए साहिर दोपहर की नींद में देखे गए किसी हसीन ख़्वाब की तरह थे। दोपहर की नींद टूटने के बाद भी ख़्वाब की ख़ुमारी घंटों छाई रहती है। अमृता प्रीतम के ज़हन पर साहिर के ख़्वाब की ख़ुमारी ताज़िंदगी छाई रही। एक दिन अमृता प्रीतम ने अपने शौहर सरदार प्रीतम से तलाक़ ले लिया मगर उनका सरनेम ताउम्र अपने पास रखा। सन् 1960 में अमृता ने मुंबई आने का इरादा किया। सुबह ब्लिट्ज अख़बार पर नज़र पड़ी। साहिर और सुधा मल्होत्रा के फोटो के नीचे लिखा था- साहिर की नई मुहब्बत। चित्रकार इमरोज़ के स्कूटर पर बैठ कर उनकी पीठ पर अंगुलियों से साहिर का नाम लिखने वाली अमृता ने शादी किए बिना इमरोज़ के साथ घर बसा लिया।
सब्ज़ शाख़ पर इतराते हुए किसी सुर्ख़ गुलाब की तरह सिने जगत में सुधा मल्होत्रा की दिलकश इंट्री हुई। काली ज़ुल्फें, गोरा रंग, बोलती हुई आंखें, हया की सुर्ख़ी से दमकते हुए रुख़सार और लबों पर रक़्स करती हुई मोहक मुस्कान ... सचमुच सुधा मल्होत्रा का हुस्न मुकम्मल ग़ज़ल जैसा था। साहिर ने इस ग़ज़ल पर एक नज़्म लिख डाली-
कभी-कभी मेरे दिल में ख़याल आता है
कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए
तू इससे पहले सितारों में बस रही थी कहीं
तुझे ज़मीं पर बुलाया गया है मेरे लिए
चेतन आनंद की फ़िल्म के लिए संगीतकार ख़य्याम ने सुधा मल्होत्रा और गीता दत्त की आवाज़ में इस नज़्म को रिकॉर्ड किया। फ़िल्म नहीं बन सकी। इसी नज़्म को केंद्र में रखकर यश चोपड़ा ने एक कहानी तैयार की। इस पर एक यादगार फ़िल्म 'कभी कभी' बनी। फ़िल्म की नायिका राखी की तरह सुधा मल्होत्रा ने भी अचानक शादी कर ली थी।
फ़िल्म 'भाई बहन' (1959) में सुधा मल्होत्रा की गायकी से साहिर बेहद मुतास्सिर हुए। फ़िल्म 'दीदी' के संगीतकार एन दत्ता बीमार पड़ गए। साहिर की गुज़ारिश पर गायिका सुधा मल्होत्रा ने साहिर की नज़्म को कंपोज़ किया। सुधा की आवाज़ में यह नज़्म रिकॉर्ड हुई-
तुम मुझे भूल भी जाओ तो ये हक़ है तुमको
मेरी बात और है मैंने तो मुहब्बत की है
साहि की शख़्सियत पर मुहब्बत का रंग छाने लगा था। फ़िल्म 'बरसात की रात' (1960) में साहिर ने गायिका सुधा मल्होत्रा के लिए सिफ़ारिश की। सुधा मल्होत्रा के हुस्न में तपिश थी मगर उनकी गायिकी भी दमदार थी। फ़िल्म की बेमिसाल क़व्वाली में उनकी गायकी का कमाल देखने लायक़ है-
ना तो कारवाँ की तलाश है,
ना तो हमसफ़र की तलाश है.
मेरे शौक़-ए-ख़ाना ख़राब को,
तेरी रहगुज़र की तलाश है
मीडिया ने सुधा मल्होत्रा को साहिर की नई मुहब्बत के रूप में प्रचारित किया। दिल्ली से आईं सुधा मलहोत्रा की उम्र महज 23 साल थी। मगर वे अमृता प्रीतम की तरह दिन में ख़्वाब देखने वाली जज़्बाती लड़की नहीं थीं। उन्होंने घोषणा कर दी कि वे अब फ़िल्मों के लिए नहीं गाएंगी। दूसरा नेक काम सुधा मलहोत्रा ने ये किया कि अपने बचपन के दोस्त शिकागो रेडियो के मालिक गिरधर मोटवानी से तुरंत शादी कर ली। फ़िल्मी चकाचौंध से दूर अपने घर की दहलीज़ में आस्था का दीया जलाकर सुधा मल्होत्रा गा रहीं थीं-
न मैं धन चाहूँ न रतन चाहूँ
तेरे चरणों की धूल मिल जाए
तो मैं तर जाऊं
राज कपूर ने सुधा मल्होत्रा की आवाज़ में एक ग़ज़ल सुनी। वे सुधा के घर गए। सुधा ने कहा- राज साहब, अब मैं फ़िल्मों के लिए नहीं गाती। उनके आग्रह पर सुधा ने अमेरिका अपने शौहर को फ़ोन किया। शौहर ने अनुमति दी। फ़िल्म 'प्रेम रोग' में सुधा मलहोत्रा ने एक गीत गाया-
ये प्यार था या कुछ और था
न तुझे पता न मुझे पता
अब्दुल हई उर्फ़ साहिर ने नज़्म की शक्ल में अपनी पहली मुहब्बत ऐश कौर को एक ख़त लिखा था। नतीजा ये हुआ कि कॉलेज प्रशासन ने साहिर को कॉलेज से निकाल दिया। साहिर के दिल में न जाने कैसा ख़ौफ़ बैठ गया कि उन्होंने न तो अमृता प्रीतम से अपनी मुहब्बत का इज़हार किया और न ही सुधा मल्होत्रा से। उनकी ख़ामोशी में उनका इज़हार पोशीदा था। मुहब्बत उनके लिए हसीन ख़्वाबों की एक धनक थी जिसका दूर से वे दीदार किया करते थे। अपनी तनहाइयों को रोज़ शाम को वे जाम से आबाद किया करते थे। मगर दुनिया को साहिर मुहब्बत के ऐसे तराने दे गए जिसमें धड़कते दिलों की गूंज सुनाई पड़ती है।
साहिर अपने गीतों में नया रंग और नई ख़ुशबू लेकर आए। देश, समाज और वक़्त के मसाईल के साथ उनके गीतों में एहसास और जज़्बात की ऐसी नक़्क़ाशी है जिससे उनके गीत बिल्कुल अलग नज़र आते हैं। एक जुमले में किसी अहम् बात को साहिर इतनी ख़ूबसूरती से कह देते हैं कि सुनने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता है- जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नहीं।
8 मार्च 1921 को लुधियाना में जन्मे साहिर लुधियानवी का यह जन्म शताब्दी वर्ष है। साहिर ने चार मिसरे अपने लिए कहे थे। वो आपके लिए पेश हैं-
न मुंह छुपा के जिए हम न सर झुका के जिए
सितमगरों की नज़र से नज़र मिलाके जिए
अब एक रात अगर कम जिए तो कम ही सही
यही बहुत है कि हम मशअलें जलाके जिए
आपका-
देवमणि पांडेय
सम्पर्क : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाडा, गोकुलधाम, फिल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063 , 98210 82126

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