Wednesday, October 20, 2021

देवमणि पांडेय जी की पांच ग़ज़लें

=== परिचय : देवमणि पांडेय === 


जन्म : 4 जून 1958 सुलतानपुर (उ.प्र.), 
शिक्षा :  हिन्दी और संस्कृत में प्रथम श्रेणी एम.ए.। 
लेखन विधा : गीत, ग़ज़ल, कविताएं, लेख। 

दो ग़ज़लें वर्ष 2017 में जलगांव विश्व विद्यालय के एम ए हिंदी के पाठ्यक्रम में शामिल। 

चार कविता संग्रह प्रकाशित हैं- 1.दिल की बातें (1999), 2. ख़ुशबू की लकीरें (2005), 3.अपना तो मिले कोई (2012), 4. कहां मंज़िलें कहां ठिकाना (2020)। सिने गीतकारों और फ़िल्म लेखकों पर इंडिया नेट बुक्स नई दिल्ली से एक किताब प्रकाशित- 'अभिव्यक्ति के इंद्रधनुष : सिने जगत की सांस्कृतिक संपदा।'  

मुम्बई के सांध्य दैनिक 'संझा जनसत्ता' में कई सालों तक साप्ताहिक स्तम्भ 'साहित्यनामचा' का लेखन। हिंदी-उर्दू की साहित्यिक पत्रिकाओं में ग़ज़लें प्रकाशित। देश-विदेश में कई पुरस्कारों और सम्मान से अलंकृत। 


बतौर सिने गीतकार देवमणि पांडेय के कैरियर की शुरूआत निर्देशक तिग्मांशु धूलिया की फ़िल्म 'हासिल' से हुई। डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फ़िल्म 'पिंजर' में उनके लिखे गीत 'चरखा चलाती मां' को सन् 2003 के लिए बेस्ट लिरिक ऑफ दि इयर अवार्ड से नवाज़ा गया। 

गीतकार देवमणि पांडेय ने 'कहां हो तुम' और 'तारा : दि जर्नी आफ लव आदि फिल्मों को भी अपने गीतों से सजाया है। उन्होंने सोनी चैनल के धारावाहिक 'एक रिश्ता साझेदारी का', स्टार प्लस के सीरियल 'एक चाबी है पड़ोस में' और ऐंड टीवी के धारावाहिक 'येशु' भी अपने क़लम का जादू दिखाया है। संगीत अल्बम गुज़ारिश, तन्हा तन्हा और बेताबी में भी उनके गीत पसंद किए गए।  

सम्पर्क :
देवमणि पांडेय : बी-103, दिव्य स्तुति, कन्या पाड़ा, गोकुलधाम, फ़िल्मसिटी रोड, गोरेगांव पूर्व, मुम्बई-400063, M : 98210 82126 

(1) देवमणि पांडेय की ग़ज़ल 

मेरा यक़ीन, हौसला, किरदार देखकर 
मंज़िल क़रीब आ गई रफ़्तार देखकर 

जब फ़ासले हुए हैं तो रोई है मां बहुत
बेटों के दिल के दरमियां दीवार देखकर 

हर इक ख़बर का जिस्म लहू में है तरबतर 
मैं डर गया हूँ आज का अख़बाऱ देखकर 

बरसों के बाद ख़त्म हुआ बेघरी का दर्द  
दिल ख़ुश हुआ है दोस्तो घरबार देखकर 

दरिया तो चाहता था कि सबकी बुझा दे प्यास 
घबरा गया वो इतने तलबगार देखकर 

वो कौन था जो शाम को रस्ते में मिल गया
वो दे गया है रतजगा एक बार देखकर 

चेहरे से आपके भी झलकने लगा है इश्क़ 
जी ख़ुश हुआ है आपको बीमार देखकर 


(2) देवमणि पांडेय की ग़ज़ल 

फूल महके यूं फ़ज़ा में रुत सुहानी मिल गई 
दिल में ठहरे एक दरिया को रवानी मिल गई 

घर से निकला है पहनकर जिस्म ख़ुशबू का लिबास
लग रहा है गोया इसको रातरानी मिल गई 

कुछ परिंदों ने बनाए आशियाने शाख़ पर
गाँव के बूढ़े शजर को फिर जवानी मिल गई 

आ गए बादल ज़मीं पर सुनके मिट्टी की सदा
सूखती फ़सलों को पल में ज़िंदगानी मिल गई 

जी ये चाहे उम्र भर मैं उसको पढ़ता ही रहूं
याद की खिड़की पे बैठी इक कहानी मिल गई 

मां की इक उंगली पकड़कर हंस रहा बचपन मेरा
एक अलबम में वही फोटो पुरानी मिल गई 

  
(3) देवमणि पांडेय की ग़ज़ल 

बदली निगाहें वक़्त की क्या क्या चला गया 
चेहरे के साथ साथ ही रुतबा चला गया 

बचपन को साथ ले गईं घर की ज़रूरतें 
अपनी किताबें छोड़के बच्चा चला गया 

मेरी तलब को जिसने समंदर अता किया 
अफ़सोस मेरे दर से वो प्यासा चला गया 

वो बूढ़ी आंखें आज भी रहती हैं मुंतज़िर
जिनको अकेला छोड़के बेटा चला गया 

रिश्ता भी ख़ुद में होता है स्वेटर ही की तरह   
उधड़ा जो एक बार, उधड़ता चला गया 

अपनी अना को छोड़के पछताए हम बहुत 
जैसे किसी दरख़्त का साया चला गया 

(4) देवमणि पांडेय की ग़ज़ल 

वक़्त के सांचे में ढल कर हम लचीले हो गए 
रफ़्ता रफ़्ता  ज़िंदगी के पेंच ढीले हो गए  

इस तरक़्क़ी से भला क्या फ़ायदा हमको हुआ
बुझ न पाई प्यास कुछ, बस होंठ गीले हो गए 

जी हुज़ूरी की सभी को किस कदर आदत पड़ी 
जो थे परबत कल तलक वो आज टीले हो गए
 
क्या हुआ क्यूं घर किसी का आ गया फुटपाथ पर     
शायद उनकी लाडली के हाथ पीले हो गए 

 आपके बर्ताव में थी सादगी पहले बहुत
जब ज़रा शोहरत मिली तेवर नुकीले हो गए 

हक़ बयानी की हमें क़ीमत अदा करनी पड़ी 
हमने जब सच कह दिया वो लाल-पीले हो गए 

हो मुख़ालिफ़ वक़्त तो मिट जाता है नामो-निशां
इक महाभारत में गुम कितने क़बीले हो गए 

(5) देवमणि पांडेय की ग़ज़ल 

इस जहां में प्यार महके ज़िंदगी बाक़ी रहे.
ये दुआ मांगो दिलों में रौशनी बाक़ी रहे. 

आदमी पूरा हुआ तो देवता हो जायेगा,
ये ज़रूरी है कि उसमें कुछ कमी बाक़ी रहे. 

दोस्तों से दिल का रिश्ता काश हो कुछ इस तरह,
दुश्मनी के साये में भी दोस्ती बाक़ी रहे. 

ख़्वाब का सब्ज़ा उगेगा दिल के आंगन में ज़रूर,  
शर्त है आँखों में अपनी कुछ नमी बाक़ी रहे. 

इश्क़ जब कीजे किसी से दिल में ये जज़्बा भी हो,
लाख हों रुसवाइयां पर आशिक़ी बाक़ी रहे. 

दिल में मेरे पल रही है ये तमन्ना आज भी,
इक समंदर पी चुकूं और तिश्नगी बाक़ी रहे.
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