Tuesday, October 19, 2021

संघर्ष : कहानी सतपाल ख़याल

 


संघर्ष : कहानी सतपाल ख़याल 


ऋषि अपने पिता जी के साथ बैठकर शाम की चाय पी रहा था | ऋषि के पिता जसवंत सिंह , जो कि पेशे से किसी प्राइवेट कम्पनी में बतौर इंजीनीयर काम करते थे | बेटे से उन्होंने  कहा कि अब वो आगे कुछ कोर्स कर ले | बाहरवीं में उसके अच्छे नम्बर हैं |

इस पर ऋषि थोड़ा गुस्से में बोला -“पापा , मैं आगे कोर्स  नहीं करूंगा | मैं कुछ छोटा –मोटा व्यापार करूंगा |”

 “अरे यार व्यापार ही करना था तो फिर पढ़ाई क्यों की ?” जसवंत सिंह जी ने कहा |

 “पापा , इंजीनीयर बनके भी क्या करूंगा | 10-10 हजार में लेबर से भी कम रेट पर काम कर रहे हैं इंजीनीयर , आप ही तो बताते हैं और आप भी इंजीनीयर हो ,3 0 साल काम करने के बाद अब भी नौकरी ढूंढ  रहे हो | या तो फिर मैं कैनेडा चला जाऊँगा | यहाँ नहीं रहूंगा |”

ऋषि ने बिना रुके बहुत सी बातें अपने पिता को  कह दी | कुछ देर चुप रहकर जसवंत सिंह जी बोले -

“शायद तुम ठीक कह  रहे हो | चाय ठंडी हो रही है ,चाय पी लो|” पिता ने लम्बी सांस भर कर बेटे को कहा| फिर कुछ सोचने के बाद बोले -

 “ बेटा जीवन एक संघर्ष है ,सारी  उम्र करना पड़ता है  और फिर संघर्ष की आग में तपकर ही तो  तो सोना कुंदन बनता है |”

“ये सब खुद को समझाने की बाते हैं , संघर्ष इस देश की कमज़ोर व्यवस्था की देन है , न कि कुदरत की | आम लोगों को ऐसे किस्से कहानियाँ सुना कर सदियों तक सियासत ने कोल्हू के बैल बना के रखा है | आप बताओ जिस देश में लोग रोटी को माथा टेक के खाते हों उस देश में .....”

बेटे की बात को बीच में काटकर जसवंत जी बोले “ अरे वो , इश्वर को धन्यवाद देते हैं”

“धन्यवाद नहीं पापा ,वो शुक्र मनाते हैं कि रोटी मिली तो , जिस देश में सैकड़ों लोग भूखे  पेट सोते हों, वहां जिसको रोटी नसीब हो जाए वो शुक्र ही मनायेगा , मैनें नहीं रहना यहाँ|” बेटे ने झल्लाकर कहा|

 

इतने में किसी ने दरवाज़े पे दस्तक दी ,बेटे ने देखा कि बहुत  से लोग कुछ बैनर लेकर ,हाथ जोड़कर खड़े थे ,ये लोग नगरपालिका के इलेक्शन के लिए वोट मांगने आए थे | बेटे ने गुस्से में उनसे बोला कि हर गली –चौराहे पे गटर रुके हुए हैं , नगर पालिका करती क्या है ?

 “इतने में जसवंत जी ने आके बेटे को रोका और हाथ जोड़कर सामने खड़े महाशय से  बोले  , जी जनाब , आपको ही वोट देंगे |”इतना कहकर उनको चलता किया |

 अगले दिन सुबह-सुबह बाप और बेटा बैठे टोवी देख रहे थे तो अचानक हत्या और बलात्कार की खबरों को सुनकर बेटे ने पिता से कहा –

“ इस देश में न किसी की इज्ज़त है , न सुरक्षा | आदमी मर जाए चाहे जानवर ,किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता | एक आदमी हर सैकंड करोड़ों कमा रहा है और एक आदमी परिवार की रोटी के लिए सारी उम्र पिसता है और खुशी–ख़ुशी स्वीकार कर लेता है कि जीवन तो संघर्ष है | जीवन संघर्ष नहीं है, इसे संघर्ष बनाया गया है , जान- बूझ कर इस देश को गरीब और अशिक्षित रखा गया है | ग़रीब , के ग़रीब रहने में ही सत्ता को फायदा है .....” बेटा निरंतर आक्रोश में बड़बड़ाता रहा |

फिर जसवंत जी ने  बेटे को कहा कि जाओ अपनी माता को स्टेशन से ले आओ| बेटा स्कूटर लेकर स्टेशन से अपनी माँ को लेने चला गया जो कुछ दिन मायके रहके वापिस आ रही थी |

काफी देर बाद , जसवंत जी को  निर्मला का फ़ोन आया कि ऋषि अब तक स्टेशन नहीं पहुंचा | ये सुनकर जसवंत जी चिंतित हो गये |

अचानक रिंग बजी और जसवंत  जी ने घबराते हुए फोन उठाया

कोई फोन पर कहा रहा था कि  आपके बेटे को एक धार्मिक जुलूस के कुछ लोगों ने बहुत मारा है वो नेहरू हस्पताल में है |

इतने में जसवंत  जी की पत्नी निर्मला भी रिक्शा लेके दरवाज़े पर पहुंची और खबर सुनते ही घबरा गई | कैसे भी करके दोनों अस्पताल पहुंचे |

डाक्टर ने बताया अब घबराने की कोई बात नहीं अब वो ठीक है |

अगले दिन ऋषि को होशा आया तो जसवंत  जी ने बेटे से कहा – “ बेटा , तुम कैनेडा जाने की तौयारी करो” | इतना कहकर जसवंत  जी ने अपने अन्दर के ज्वार भाटे को आँखों के बाहर आने से रोक लिया |

कुछ सालों बाद अचानक जसवंत जी की हृदय घात से मृत्यु हो गई और भारी मन से उनका बेटा ऋषि घर पहुंचा | शाम के वक्त जब सारा परिवार अफ़सोस में बैठा था तो ऋषि ने बातों –बातों में पिता को याद करते हुए अपनी माँ से कहा कि जब पिता जी मुझे एयर पोर्ट छोड़ने आये थे तो मैंने उनसे कहा कि आप भी कुछ दिन बाद कैनेडा शिफ्ट हो जाना | उस पर पिता जी ने कहा था -

“ बेटा , मैं एक पेड़ की तरह हूँ | मैं आसमान को देख तो सकता हूँ लेकिन आसमान में उड़ नहीं सकता | तुम पंछी की तरह हो , कहीं  भी उड़ कर जा सकते हो |तुम्हारे लिए फिलहाल कोई सरहद नहीं है | तुम जाओ ,अपने बनाये हुए आकाश में उड़ान भरो | अगर थक जाओ तो विश्राम के लिए बापस आ जाना |”

अगले दिन ऋषि आँगन में लगे उस नीम के पेड़ को देखकर बोला ,जिसे उसके पिता ने ही लगाया था –

“माँ , अब मैं बापस नहीं जाऊँगा | अब मैं इस पेड़ की देखभाल करूंगा | भले इस ज़मीन कि मिट्टी मेरी ख्वाहिशें पूरा नहीं कर सकती लेकिन इस मिट्टी से मेरा रिश्ता है ,जैसा मेरा रिश्ता तुझसे है , माँ |”

 

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