ग़ज़ल 
धूप का जंगल, नंगे पावों इक बंजारा करता क्या 
रेत के दरिया, रेत के झरने प्यास का मारा करता क्या 
बादल-बादल आग लगी थी, छाया तरसे छाया को 
पत्ता-पत्ता सूख चुका था पेड़ बेचारा करता क्या 
सब उसके आँगन में अपनी राम कहानी कहते थे 
बोल नहीं सकता था कुछ भी घर-चौबारा करता क्या 
तुमने चाहे चाँद-सितारे, हमको मोती लाने थे,
हम दोनों की राह अलग थी साथ तुम्हारा करता क्या
ये है तेरी और न मेरी दुनिया आनी-जानी है 
तेरा-मेरा, इसका-उसका, फिर बंटवारा करता क्या
टूट गये जब बंधन सारे और किनारे छूट गये 
बींच भंवर में मैंने उसका नाम पुकारा करता क्या 





