Wednesday, March 19, 2014

बलवान सिंह "आज़र"













गज़ल

जिन्दगी कुछ थका थका हूँ मैं
देख ले लड़खड़ा रहा हूँ मैं

रेत में ढूँढता रहा मोती
क्या कहूं कितना बावला हूँ मैं

जा चुका मेरा काफिला आगे
था जहां पर वहीं खड़ा हूँ मैं


खूबियां पूछता है क्यों मेरी
कुछ बुरा और कुछ भला हूँ मैं

अपनी सूरत कभी नहीं देखी
लोग कहते हैं आइना हूँ मैं

Monday, March 10, 2014

जतिन्दर परवाज़

                                                           






 




ग़ज़ल 

सहमा सहमा हर इक चेहरा मंज़र मंज़र खून में तर
शहर से जंगल ही अच्छा है चल चिड़िया तू अपने घर


तुम तो ख़त में लिख देती हो घर में जी घबराता है
तुम क्या जानो क्या होता है हाल हमारा सरहद पर

बेमौसम ही छा जाते हैं बादल तेरी यादों के
बेमौसम ही हो जाती है बारिश दिल की धरती पर

आ भी जा अब आने वाले कुछ इन को भी चैन पड़े
कब से तेरा रस्ता देखें छत आँगन दीवार-ओ-दर

जिस की बातें अम्मा अब्बू अक्सर करते रहते हैं
सरहद पार न जाने कैसा वो होगा पुरखों का घर

Saturday, March 8, 2014

ग़ज़ल- दीक्षित दनकौरी












ग़ज़ल

चलें हम रुख़ बदल कर देखते हैं
ढलानों पर फिसल कर देखते हैं 


ज़माना चाहता है जिस तरह के
उन्हीं सांचों में ढल कर देखते हैं 


करें ज़िद,आसमां सिर पर उठा लें
कि बच्चों-सा मचल कर देखते हैं


हैं परवाने, तमाशाई नहीं हम
शमा के साथ जल कर देखते हैं 


तसल्ली ही सही,कुछ तो मिलेगा
सराबों में ही चल कर देखते हैं

Saturday, March 1, 2014

श्रद्धा जैन की एक ग़ज़ल




















ग़ज़ल 


बात दिल की कह दी जब अशआर में
ख़त किताबत क्यूँ करूँ बेकार में

मरने वाले तो बहुत मिल जाएंगे
सिर्फ़ हमने जी के देखा प्यार में

कैसे मिटती बदगुमानी बोलिये
कोई दरवाज़ा न था दीवार में

आज तक हम क़ैद हैं इस खौफ से
दाग़ लग जाए न अब किरदार में

दोस्ती, रिश्ते, ग़ज़ल सब भूल कर
आज कल उलझी हूँ मैं घर बार में

Wednesday, February 26, 2014

नफ़स अम्बालवी साहब की एक ग़ज़ल


















उनकी किताब "सराबों का सफ़र" से एक ग़ज़ल आप सब की नज्र-

उसकी शफ़क़त का हक़ यूँ अदा  कर दिया 
उसको सजदा  किया और  खुदा कर दिया 

उम्र  भर  मैं  उसी  शै  से  लिपटा  रहा 

जिस ने हर शै से मुझको जुदा कर दिया

इस  लिए  ही  तो सर आज  नेज़ों पे है 

हम से जो कुछ भी उसने कहा कर दिया 

दिल की तकलीफ़ जब हद से बढ़ने लगी 

दर्द  को  दर्दे-दिल  कि  दवा  कर  दिया 

ऐसे  फ़नकार की  सनअतों को सलाम 

जिस ने पत्थर को भी देवता कर दिया 

आप  का  मुझपे  एहसान  है  दोस्तो 

क्या था मैं, आपने क्या से क्या कर दिया 

कौन गुज़रा दरख्तों को छू  कर 'नफ़स'

ज़र्द  पत्तों  को  किसने  हरा  कर  दिया 

शफ़क़त=मेहरबानी,सनअतों=कारीगरी