Tuesday, October 12, 2021

BBC पर छपे -निदा साहब के लेख

 आज निदा साहब का ज़िक्र आया तो मुझे BBC पर छपे उनके की लेख याद आये जिन्हें बड़ी खूबसूरती से उन्होंने लिखा है | आप इन सब लेखों को इस साईट पर जाकर पढ़ सकते हैं -


Monday, October 11, 2021

खूबसूरत ग़ज़ल -बशीर बद्र


ग़ज़ल

 मुस्कुराती हुई धनक है वही
उस बदन में चमक दमक है वही

फूल कुम्हला गये उजालों के
साँवली शाम में नमक है वही

अब भी चेहरा चराग़ लगता है
बुझ गया है मगर चमक है वही

कोई शीशा ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही

प्यार किस का मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही

छोटी बह्र कि ग़ज़ल -बशीर बद्र

 

ग़ज़ल 


कोई हाथ नहीं ख़ाली है
बाबा ये नगरी कैसी है

कोई किसी का दर्द न जाने
सबको अपनी अपनी पड़ी है

उसका भी कुछ हक़ है आख़िर
उसने मुझसे नफ़रत की है

जैसे सदियाँ बीत चुकी हों
फिर भी आधी रात अभी है

कैसे कटेगी तन्हा तन्हा
इतनी सारी उम्र पड़ी है

हम दोनों की खूब निभेगी
मैं भी दुखी हूँ वो भी दुखी है

अब ग़म से क्या नाता तोड़ें
ज़ालिम बचपन का साथी है

ग़ज़लें -बशीर बद्र

 

ग़ज़ल 

होंठों पे मुहब्बत के फ़साने नहीं आते
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते

पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आँखों को अभी ख़्वाब छुपाने नहीं आते

दिल उजड़ी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहाँ रात बिताने नहीं आते

उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते

इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते

क्या सोचकर आए हो मोहब्बत की गली में
जब नाज़ हसीनों के उठाने नहीं आते

अहबाब[1] भी ग़ैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते

एक और ग़ज़ल -बशीर बद्र साहब

 

ग़ज़ल 

आंसुओं से धुली ख़ुशी की तरह
रिश्ते होते हैं शायरी की तरह

जब कभी बादलों में घिरता है
चाँद लगता है आदमी की तरह

किसी रोज़न किसी दरीचे से
सामने आओ रोशनी की तरह

सब नज़र का फ़रेब है वर्ना
कोई होता नहीं किसी की तरह

खूबसूरत, उदास, ख़ौफ़जदा
वो भी है बीसवीं सदी की तरह

जानता हूँ कि एक दिन मुझको
वक़्त बदलेगा डायरी की तरह