Monday, November 16, 2009

पाँचवीं क़िस्त















मिसरा-ए-तरह "तुझे ऐ ज़िंदगी , हम दूर से पहचान लेते हैं" पर अगली दो ग़ज़लें

तिलक राज कपूर 'राही' ग्‍वालियरी

दिखा कर ख़ौफ़ दुनिया के जो हमसे दान लेते हैं
मना कर दें अगर हम तो भवें वो तान लेते हैं

तआरुफ़ मांगते होंगे नये कुछ लोग मिलने पर
तुझे ऐ ज़िन्‍दगी हम दूर से पहचान लेते हैं

यहाँ सीधी या सच्‍ची बात सुनता कौन है लेकिन
मसालेदार खबरें लोग कानों-कान लेते हैं

हमारे घर हैं मिट्टी के मगर पत्‍थर की कोठी पर
अगर हम जोश में आयें तो मुट्ठी तान लेते हैं

हजारों इम्तिहां हम दे चुके पर देखना है ये
नया इक इम्तिहां अब कौन सा भगवान लेते हैं

ये पटियेबाज भोपाली भला कब नापकर फेंकें
यकीं हमको नहीं होता मगर हम मान लेते हैं

तबीयत और फितरत कुछ अलग ‘राही’ने पाई है
वो अपने काम के बदले बस इक मुस्‍कान लेते हैं

तेजेन्द्र शर्मा

बिना पूछे तुम्हारे दिल की बातें जान लेते हैं
खड़क पत्तों की होती है तुम्हें पहचान लेते हैं

भला सीने में मेरे दिल तुम्हारा क्यूं धड़कता है
यही बस सोच कर हम अपना सीना तान लेते हैं

अलग संसार है तेरा, अलग दुनियां में रहता मैं
मेरी दुनियां में तेरा नाम सब अनजान लेते हैं

कभी मुश्किल हमारा रास्ता कब रोक पाई है
वो मंज़िल मिल ही जाती है जिसे हम ठान लेते हैं

8 comments:

पारुल "पुखराज" said...

अलग संसार है तेरा, अलग दुनियां में रहता मैं
मेरी दुनियां में तेरा नाम सब अनजान लेते हैं

vaah

girish pankaj said...

बड़ा ही तेज है शर्मा, ये बन्दा तो निराला है
इन्ही से लोग लन्दन में हमेशा ज्ञान लेते है
कहानी भी ये लिखते है कहते शेर भी सुन्दर
इन्हें अपना गुरू हम इसलिए तो मान लेते है.
बधाई....

daanish said...

तआरुफ़ मांगते होंगे नये कुछ लोग, मिलने पर
तुझे ऐ ज़िन्‍दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं...

achhee girahaa lagaaee hai janaab ne....ek alag-si soch....
gzl dilchasp hai

कभी मुश्किल हमारा रास्ता कब रोक पाई है
वो मंज़िल मिल ही जाती है जिसे हम ठान लेते हैं

Tejender ji ka ye sher bahut
pasand aaya....

sabhi log bahut mehnat kar rahe haiN....ye baat fazaloN meiN saaf jhalaktee hai...aur ab ....'khayaal' ji...
aapki gzl ka intzaar hai...!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

जनाब सतपाल ख्याल साहब,
सुबहान अल्लाह,
हमारी खुशकिस्मती है कि आपकी महफिल में हाज़िरी का मौका मिला.
बस इतना ही कह पा रहे हैं-
'जनाबे-बर्की' से लेकर सुखनवर 'शर्मा साहिब' तक
'ख्याल' हम जैसे नादां भी बहुत कुछ जान लेते हैं
नये मिसरे का इंतजार रहेगा...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

नीरज गोस्वामी said...

हमारे घर हैं मिट्टी के मगर पत्‍थर की कोठी पर
अगर हम जोश में आयें तो मुट्ठी तान लेते हैं
:तिलक राज कपूर 'राही' ग्‍वालियरी

कभी मुश्किल हमारा रास्ता कब रोक पाई है
वो मंज़िल मिल ही जाती है जिसे हम ठान लेते हैं
:तेजेन्द्र शर्मा

बेहतरीन अशआरों से सजी दोनों ग़ज़लें तरही को बुलंदियों की और ले जा राही हैं.

नीरज

गौतम राजऋषि said...

अहा, दो महारथियों को एक साथ पढ़ना...

तिलक राज जी शेर जब कहते हैं तो कई बार लगता है माँ सरस्वती खुद ही उन्हें मिस्‍रे डिक्टेट कराती हैं। ग़ज़ब का मतला और उतनी ही जबरदस्त गिरह! वाह, क्या कहने!! "यहाँ सीधी या सच्‍ची बात सुनता कौन है लेकिन/मसालेदार खबरें लोग कानों-कान लेते हैं"...इस शेर पर तो करोड़ो दाद हमारी!

और तेजेन्द्र साब को पढ़ना तो हमेशा से एक ट्रीट रहा है। अच्छे शेरों से रची ये तरही...खास कर ये एक शेर बहुत पसंद आया है "भला सीने में मेरे दिल तुम्हारा क्यूं धड़कता है/यही बस सोच कर हम अपना सीना तान लेते हैं"

निर्झर'नीर said...

तबीयत और फितरत कुछ अलग ‘राही’ने पाई है
वो अपने काम के बदले बस इक मुस्‍कान लेते हैं

wahhhhhhhhhhhhh raahi saheb wahh

blackboyfriend said...

कभी मुश्किल हमारा रास्ता कब रोक पाई है
वो मंज़िल मिल ही जाती है जिसे हम ठान लेते हैं
कभी और क का क्या मेल हुआ
नहीं मुश्किल कोई भी राह उनकी रोक पाई है
उन्हे मंजिल सदा मिल जाए है जो ठान लेते हैं