जन्म: मई 1932
निधन: मई 2001
किसी अमीर को कोई फ़क़ीर क्या देगा
ग़ज़ल की सिन्फ़ को शाहिद कबीर क्या देगा
लेकिन शाहिद कबीर ने ग़ज़ल को जो दिया है उससे यक़ीनन ग़ज़ल और अमीर हुई है। फ़क़ीर इस दुनिया को वो दे जाते हैं, जो कोई अमीर नहीं दे सकता। फलों से लदी टहनियां हमेशा झुकी हुई मिलती हैं। भले वो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी ग़ज़लें, नग़्में आज भी ज़िंदा हैं। इनके तीन ग़ज़ल संग्रह "चारों और" " मिट्टी के मकान" और "पहचान" प्रकाशित हुए थे. मुन्नी बेग़म से लेकर जगजीत सिंह तक हर ग़ज़ल गायक ने इनकी ग़ज़लों को आवाज़ दी है . इन्होंने कई फिल्मों के लिए नग़मे और ग़ज़लें कहीं हैं.आज ही मैनें ये वीडिओ यू टियूब पे डाला है, आइए शाहिद साहब की आवाज़ में पहले इस रेडियो मुशायरे को सुनते हैं-
7 comments:
हर इक हँसी में छुपी खौ़फ़ की उदासी है
समुन्दरों के तले भी ज़मीन प्यासी है
और ये
कोई 'शाहिद' जब अपने जुर्म का इकरार करता है,
तो मैं दामन में अपने सर झुकाकर देख लेता हूँ
कितनी सरलता से संजीदगी बयाँ की है. गज़लगोई का हुनर शायद इसी अंदाज़ में हैं.
शाहिद कबीर साहब जैसे हीरे से तार्रुफ़ कराने का शुक्रिया.
Once again thanks Mr. satpal ji to give place great poet Shahid Kabir
Regards
Sameer Kabir
हर इक हँसी में छुपी खौ़फ़ की उदासी है
समुन्दरों के तले भी ज़मीन प्यासी है।
शायरी की इन्तेहा है ये शेर।
समंदर तेरी प्यास बुझती रहे
भटकती नदी को ठिकाना मिले
तरसता हूँ नन्हें से लब की तरह
तबस्सुम का कोई बहाना मिले
पानी का पत्थरों पे असर कुछ नहीं हुआ
रोए तमाम उम्र मगर कुछ नहीं हुआ
इसीलिये कहा जाता है 'जहँ न पहुँचे रवि, तहँ पहुँचे कवि'।
बेहतरीन ग़ज़लें। आनंद आ गया।
हर इक हँसी में छुपी खौ़फ़ की उदासी है
समुन्दरों के तले भी ज़मीन प्यासी है।
शायरी की इन्तेहा है ये शेर।
समंदर तेरी प्यास बुझती रहे
भटकती नदी को ठिकाना मिले
तरसता हूँ नन्हें से लब की तरह
तबस्सुम का कोई बहाना मिले
पानी का पत्थरों पे असर कुछ नहीं हुआ
रोए तमाम उम्र मगर कुछ नहीं हुआ
इसीलिये कहा जाता है 'जहँ न पहुँचे रवि, तहँ पहुँचे कवि'।
बेहतरीन ग़ज़लें। आनंद आ गया।
kya baat hai satpal ji.. hamesha ki tarah gajab ki prastuti. Shahid kabeer ji ko naman...
yakinan kohinoor hai
शाहिद कबीर साहब से तार्रुफ़ कराने का शुक्रिया.
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