Monday, March 22, 2010

शाहिद कबीर

जन्म: मई 1932
निधन: मई 2001

किसी अमीर को कोई फ़क़ीर क्या देगा
ग़ज़ल की सिन्फ़ को शाहिद कबीर क्या देगा


लेकिन शाहिद कबीर ने ग़ज़ल को जो दिया है उससे यक़ीनन ग़ज़ल और अमीर हुई है। फ़क़ीर इस दुनिया को वो दे जाते हैं, जो कोई अमीर नहीं दे सकता। फलों से लदी टहनियां हमेशा झुकी हुई मिलती हैं। भले वो आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी ग़ज़लें, नग़्में आज भी ज़िंदा हैं। इनके तीन ग़ज़ल संग्रह "चारों और" " मिट्टी के मकान" और "पहचान" प्रकाशित हुए थे. मुन्नी बेग़म से लेकर जगजीत सिंह तक हर ग़ज़ल गायक ने इनकी ग़ज़लों को आवाज़ दी है . इन्होंने कई फिल्मों के लिए नग़मे और ग़ज़लें कहीं हैं.आज ही मैनें ये वीडिओ यू टियूब पे डाला है, आइए शाहिद साहब की आवाज़ में पहले इस रेडियो मुशायरे को सुनते हैं-





इनके ग़ज़ल संग्रह ’पहचान’ से एक कोहेनूर निकाल लाया हूँ। हाज़िर है ये बेमिसाल शे’र-

हर इक हँसी में छुपी खौ़फ़ की उदासी है
समुन्दरों के तले भी ज़मीन प्यासी है

और ये दो ग़ज़लें-

ग़ज़ल

दुआ दो हमें भी ठिकाना मिले
परिंदो ! तुम्हें आशियाना मिले

तबीयत से मुझको मिले मेरे दोस्त
मेरे दोस्तों से ज़माना मिले

समंदर तेरी प्यास बुझती रहे
भटकती नदी को ठिकाना मिले

तरसता हूँ नन्हें से लब की तरह
तबस्सुम का कोई बहाना मिले

फिर इक बार ऐ ! दौरे--फ़ुर्सत मिलें
हमें हो चला इक ज़माना मिले

मिले इस तरह सबसे ’शाहिद कबीर’
कोई दोस्त जैसे पुराना मिले

बहरे-मुतका़रिब की मुज़ाहिफ़ शक़्ल
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊ
122 122 122 12

ग़ज़ल

अब अपने साथ भी कुछ दूर जाकर देख लेता हूँ
नदी में नाव कागज़ की बहा कर देख लेता हूँ

चलो क़िस्मत नहीं तदबीर ही की होगी कोताही
हवा के रुख़ पे भी कश्ती चलाकर देख लेता हूँ

हवाओं के किले *मिसमार हो जाते हैं, ये सच है
ज़मीं की गोद में भी घर बनाकर देख लेता हूँ

*सुकूते-आब से जब दिल मेरा घबराने लगता है
तो सतहे-आब पर कंकर गिरा कर देख लेता हूँ

कोई ’शाहिद’ जब अपने जुर्म का इक़रार करता है
तो मैं दामन में अपने सर झुका कर देख लेता हूँ

*मिसमार-धवस्त, सुकूते-आब( पानी की खामुशी)

बहरे हज़ज सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
(1222x4)

और अंत में ये ग़ज़ल सुनिए-

पानी का पत्थरों पे असर कुछ नहीं हुआ
रोए तमाम उम्र मगर कुछ नहीं हुआ



एक छोटी सी सूचना- मेरी कुछ ग़ज़लें अनुभूति पर शाया हुईं हैं। समय लगे तो ज़रूर पढ़िएगा।

7 comments:

रंजन गोरखपुरी said...

हर इक हँसी में छुपी खौ़फ़ की उदासी है
समुन्दरों के तले भी ज़मीन प्यासी है

और ये

कोई 'शाहिद' जब अपने जुर्म का इकरार करता है,
तो मैं दामन में अपने सर झुकाकर देख लेता हूँ

कितनी सरलता से संजीदगी बयाँ की है. गज़लगोई का हुनर शायद इसी अंदाज़ में हैं.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" said...

शाहिद कबीर साहब जैसे हीरे से तार्रुफ़ कराने का शुक्रिया.

Anonymous said...

Once again thanks Mr. satpal ji to give place great poet Shahid Kabir

Regards

Sameer Kabir

तिलक राज कपूर said...

हर इक हँसी में छुपी खौ़फ़ की उदासी है
समुन्दरों के तले भी ज़मीन प्यासी है।
शायरी की इन्‍तेहा है ये शेर।

समंदर तेरी प्यास बुझती रहे
भटकती नदी को ठिकाना मिले

तरसता हूँ नन्हें से लब की तरह
तबस्सुम का कोई बहाना मिले

पानी का पत्थरों पे असर कुछ नहीं हुआ
रोए तमाम उम्र मगर कुछ नहीं हुआ

इसीलिये कहा जाता है 'जहँ न पहुँचे रवि, तहँ पहुँचे कवि'।
बेहतरीन ग़ज़लें। आनंद आ गया।

तिलक राज कपूर said...

हर इक हँसी में छुपी खौ़फ़ की उदासी है
समुन्दरों के तले भी ज़मीन प्यासी है।
शायरी की इन्‍तेहा है ये शेर।

समंदर तेरी प्यास बुझती रहे
भटकती नदी को ठिकाना मिले

तरसता हूँ नन्हें से लब की तरह
तबस्सुम का कोई बहाना मिले

पानी का पत्थरों पे असर कुछ नहीं हुआ
रोए तमाम उम्र मगर कुछ नहीं हुआ

इसीलिये कहा जाता है 'जहँ न पहुँचे रवि, तहँ पहुँचे कवि'।
बेहतरीन ग़ज़लें। आनंद आ गया।

योगेन्द्र मौदगिल said...

kya baat hai satpal ji.. hamesha ki tarah gajab ki prastuti. Shahid kabeer ji ko naman...

निर्झर'नीर said...

yakinan kohinoor hai

शाहिद कबीर साहब से तार्रुफ़ कराने का शुक्रिया.