1952- 2024
बदायूँ उत्तर प्रदेश
छोटी बहर में ग़ज़लें कहने वाले ये शायर , निरंतर मश्क करते रहते थे | रोज़ शे'र कहते रहना और नये -नये ज़ाविये निकालना और प्रयोग करते रहना | ऐसा लगता है को वो शे'र बनाने वाली किसी लैब में रोज़ बैठते हों | उनका मानना था कि शायर अगर एक -आध शे'र रोज़ कहता रहे और बाद में एक अच्छी सी ज़मीन में सारे कहे हुए अशआर ज़रूरत के मुताबिक़ बैठा ले और शायद बात भी सही है और चाहते थे कि एक -एक शे'र को किसी किताब में छापा भी जाए ,जिसमें मोहब्बत पर कुछ शे'र , कुछ और मसाइल पर | जैसे कबीर दोहे कहते थे |शायरी वास्तव में एक मश्क ही है और कई बार ऊब भी आती है इस बात से कि कहीं सिंथेटिक तो नहीं शायरी या फिर कभी-कभी ग़ज़ल की बंदिशें आप को रोक भी लेती हैं आप पूरा -पूरा वो कह नहीं पाते जो चाहते हो ,जैसे ग़ालिब ने भी कहा है -
फ़हमी बदायूनी साहब ने बड़े ख़ूबसूरत शे'र कहे हैं ,आनन्द लीजिए |शायरी एक्सप्रेशन है , कैफ़ियत है , नज़ाकत है और attitude भी है -
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