4 जून 1952 बदायूँ , उत्तर प्रदेश
20 अक्तूबर 2024 बदायूँ ,उत्तर प्रदेश
टहलते फिर रहे हैं सारे घर में
तिरी ख़ाली जगह को भर रहे है
फ़हमी बदायूनी
शायरी एक्सप्रेशन है , कैफ़ियत है , नज़ाकत है और attitude भी है -
काश वो रास्ते में मिल जाए
मुझ को मुँह फेर कर गुज़रना है
ख़ुशी से काँप रही थीं ये उँगलियाँ इतनी
डिलीट हो गया इक शख़्स सेव करने में
पूछ लेते वो बस मिज़ाज मिरा
कितना आसान था इलाज मिरा
बहुत कहती रही आँधी से चिड़िया
कि पहली बार बच्चे उड़ रहे हैं
फ़हमी बदायूनी
छोटी बहर में कितने अच्छे अशआर कहे हैं फ़हमी बदायूनी साहब ने | लगातार शे'र कहते रहते थे और नये-नये शब्द ,नये ज़ाविये लेकर आते थे | फ़ेसबुक पर हर रोज़ मुलाक़ात हो जाती थी | सरहद पार तक इनके शे'र गूँज रहे थे | ये भी मीर के घराने से ही लगते हैं लेकिन प्रयोग बहुत करते हैं ,सादा अल्फाज़ में गहरी बात कह जाते थे | इस उम्दा शायर को सलाम है |
शायर एक तरह से दीवाने ही होते हैं जैसे जौन एलिया कहते हैं -
मैं भी बहुत अजीब हूँ इतना अजीब हूँ कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं
लेखक -सतपाल ख़याल @copyright
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1 comment:
वाह!! सुभानल्लाह
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