ग़ज़ल
वो कभी शहर से गुज़रे तो ज़रा पूछेंगे
ज़ख़्म हो जाते हैं किस तरह दवा पूछेंगे
गुम न हो जाएँ मकानों के घने जंगल में
कोई मिल जाए तो हम घर का पता पूछेंगे
मेरे सच से उसे क्या लेना है, मैं जानता हूँ
हाथ कुरआन पे रखवा के वो क्या पूछेंगे
वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे
10 comments:
बहुत खूबसूरत गज़ल. आभार.
एक एक शेर 'राहत' की पहचान है बतौर-ए-ख़ास
वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे
बहुत खूब !...... हरेक शेर लाज़वाब.. .
"राहत इंदौरी" जी की ग़ज़ल पढ़वाने के लिए हार्दिक आभार...
badhiya ..padhne vale ko sukun hota hai ...
वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे
वाह !!
क्या बात है !!!
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे
बहुत खूबसूरत गज़ल
thanks for sharing
''1- achchhe munsif ho je mujrim se saja poochhoge ,2- juban kat ke jakhmon ka maza poochoge '3- munsif aajkl katil bhe haikhud ay rahat ! 4- poochne layak bachoge to khata pochoge ''
''1- achchhe munsif ho je mujrim se saja poochhoge ,2- juban kat ke jakhmon ka maza poochoge '3- munsif aajkl katil bhe haikhud ay rahat ! 4- poochne layak bachoge to khata pochoge ''
बेहतरीन ग़ज़ल ...
वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे
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