Saturday, October 8, 2011

राहत इंदौरी



ग़ज़ल

वो कभी शहर से गुज़रे तो ज़रा पूछेंगे
ज़ख़्म हो जाते हैं किस तरह दवा पूछेंगे

गुम न हो जाएँ मकानों के घने जंगल में
कोई मिल जाए तो हम घर का पता पूछेंगे

मेरे सच से उसे क्या लेना है, मैं जानता हूँ
हाथ कुरआन पे रखवा के वो क्या पूछेंगे

वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे



10 comments:

रचना दीक्षित said...

बहुत खूबसूरत गज़ल. आभार.

तिलक राज कपूर said...

एक एक शेर 'राहत' की पहचान है बतौर-ए-ख़ास
वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे

Dr Varsha Singh said...

बहुत खूब !...... हरेक शेर लाज़वाब.. .

"राहत इंदौरी" जी की ग़ज़ल पढ़वाने के लिए हार्दिक आभार...

शारदा अरोरा said...

badhiya ..padhne vale ko sukun hota hai ...

इस्मत ज़ैदी said...

वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे

वाह !!
क्या बात है !!!

Pravin Shah said...

हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे

बहुत खूबसूरत गज़ल

thanks for sharing

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
Unknown said...

''1- achchhe munsif ho je mujrim se saja poochhoge ,2- juban kat ke jakhmon ka maza poochoge '3- munsif aajkl katil bhe haikhud ay rahat ! 4- poochne layak bachoge to khata pochoge ''

Unknown said...

''1- achchhe munsif ho je mujrim se saja poochhoge ,2- juban kat ke jakhmon ka maza poochoge '3- munsif aajkl katil bhe haikhud ay rahat ! 4- poochne layak bachoge to khata pochoge ''

Unknown said...

बेहतरीन ग़ज़ल ...

वो जो मुंसिफ़ है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा
हम भी रखते हैं ज़ुबाँ, पहले ख़ता पूछेंगे