एक बहुत होनहार और नये लहज़े के मालिक विकास राना "फ़िक्र" साहब की एक ग़ज़ल हाज़िर है-
ग़ज़ल
आदमी कम बुरा नहीं हूँ मैं
हां मगर बेवफा नहीं हूँ मैं
मेरा होना न होने जैसा है
जल चुका हूँ, बुझा नहीं हूँ मैं
सूरतें सीरतों पे भारी हैं
फूल हूँ, खुशनुमा नहीं हूँ मैं
थोड़ा थोड़ा तो सब पे ज़ाहिर हूँ
खुद पे लेकिन खुला नहीं हूँ मैं
रास्ते पीछे छोड़ आया हूँ
रास्तो पे चला नहीं हूँ मैं
ज़िंदगी का हिसाब क्या दूं अब
बिन तुम्हारे जिया नहीं हूँ मैं
धूप मुझ तक जो आ रही है " फ़िक्र "
यानी की लापता नहीं हूँ मैं
20 comments:
So heart touching.. Really good !!
So heart touching.. Really good !!
HAMESHAN KI TARAH YE GAZAL BHI LAJWAAB HUI HAI ,,,,,,,,SOCHA THA KUCHH SHER CHUN LOON,,BAAR BAAR PADAA PAR ,,,EK PE EK BHARI PAAYA ,,,,,,,CONGRATES
(Y)
बहुत खूब है... हमारी दुआएं आपके साथ हैं...
Wahh bahut khoob
Wah....bahut sunder....
धूप मुझ तक जो आ रही है " फ़िक्र "
यानी की लापता नहीं हूँ मैं
शानदार ग़ज़ल आदरणीय
सूरतें सीरतों पे भारी हैं
फूल हूँ, खुशनुमा नहीं हूँ मैं
बहुत खूब।
वाह बेहतरीन ग़ज़ल बेहतरीन रवानी के साथ लाजवाब
सादर
thank you ji
shukriyaa ji....
सुन्दरम् ....अति सुन्दरम् ...:)
थोड़ा थोड़ा तो सब पे ज़ाहिर हूँ
खुद पे लेकिन खुला नहीं हूँ मैं…… क्या बात !! बाकि सारे शेर भी उम्दा से कम नहीं
धूप मुझ तक जो आ रही है " फ़िक्र "
यानी की लापता नहीं हूँ मैं....;क्या बात है...खूब
बहुत सुन्दर गजकर्णी वाह वाह
बहुत सुन्दर गजकर्णी वाह वाह
बहुत सुन्दर गजल वाह वाह
Post a Comment