ग़ज़ल
ज़मीं पर बस लहू बिखरा हमारा
अभी बिखरा नहीं जज़्बा हमारा
हमें रंजिश नहीं दरिया से कोई
सलामत गर रहे सहरा हमारा
मिलाकर हाथ सूरज की किरन से
मुखालिफ़ हो गया साया हमारा
रकीब अब वो हमारे हैं जिन्होंने
नमक ताज़िन्दगी खाया हमारा
है जब तक साथ बंजारामिज़ाजी
कहाँ मंज़िल कहाँ रस्ता हमारा
तअल्लुक तर्क कर के हो गया है
ये रिश्ता और भी गहरा हमारा
बहुत कोशिश की लेकिन जुड़ न पाया
तुम्हारे नाम में आधा हमारा
इधर सब हमको कातिल कह रहे हैं
उधर ख़तरे में था कुनबा हमारा
16 comments:
Is umr men ye tewar subhanallah...Behad khoobsurat ghazal kahi hai dheron daad kabool karen.
चकित हूँ, निस्तब्ध हूँ। आपके चित्र में जो उम्र दिख रही है उसमें यह गहरी सोच आश्चर्यजनक है।
लाजवाब मुकम्मल ग़़जल।
क्या बात है। लाजवाब ग़ज़ल।
खूबसूरत ग़ज़ल
Thanks a lot Janaab Neeraj saahab...remember me in dua..
Thanks a lot Janaab Tilak saahab!
Remember me in dua!
Bahut shukriya janaab Mithilesh saahab...dua me yaad rakhiyega.
Bahut shukriya janaab Onkar saahab...remember me in dua!
बहुत बहुत शुक्रिया यशोदा जी !!
अर्ज़ किया है ......................
लिखे हैं खूब अच्छे शेर (फ़ैसल)
मुबारकबाद तुमको दे रहा हूँ
ज़रा-सा गौर इस पर भी करें सब
ग़ज़ल का शेर भी पढ़ना हमारा
किसी से भी नहीं झगड़ा हमारा
रहो औकात में कहना हमारा
आज़र
कमाल की ग़ज़ल है ....वाह
अच्छी ग़ज़ल हुई है सिराज भाई। दाद कुबूल हो।
Is Umra me jo Ikhtiyar zubaan aur kahan par Siraaj ke pas hai us par rashq karana jaiz hai mere liye --Siraaj !! Jeete rahiye Aaabaad rahiye Taabinda rahiye Shaadab rahiye --Mayank
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल। ऐसे ही लिखते रहिये। आप के कुछ शेर आपके नाम के साथ अपने फेसबुक पेज पर शेयर करना चाहती हूँ अगर आप को एतराज़ ना हो
Muafi chahta hu lekin agar ghazal likhne wala yeh bhi bta diya kare Ki ghazal kon si beher mein hai aur kaise to hum jaise nosikhion ke liye bahut aasani
Muafi chahta hu lekin agar ghazal likhne wala yeh bhi bta diya kare Ki ghazal kon si beher mein hai aur kaise to hum jaise nosikhion ke liye bahut aasani
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